Friday, November 23, 2007


दुनिया से बहुत मिल चुके ,
खुद से मिलने कि चाहत है
अजनबियों से प्यार बहुत कर चुके
अब खुद से मोहब्बत कि चाहत है


बुलंदियों से नाता कुछ ज्यादा ही जुड़ गया
अब खुद से एक रिश्ते कि चाहत है
इन्सान और ईमान को जी जान से परख लिया
अब खुद को परखने कि चाहत

दूसरों के इच्छाओं के बंधी बन
अब बहुत वक़्त गवा चुके
अपने ही सरहदों से आजाद होकर
अब खुद के साथ वक़्त बिताने कि चाहत है

बाहरी आशा निराशाओं में बहुत गहरे डूब चुके
अब खुद के आशाओं में डूब उभरने कि चाहत है
अलग अलग लोगों के उम्मीदों को कायम कर बहुत जी चुके
अब खूद से खुद के उम्मीदों को सच्चाई में बदलने कि चाहत है

खोद खोद के असतित्व को बहुत इनाम पा चुके
तराश्कर अपने आप को अब खुद के खोज कि चाहत है

इंसानों के महानों के भगवान् को बहुत जान लिया
नाम और धर्म रहित खुद में बसे उस भगवान् को पाने की चाहत है
अंत के निश्चित सत्य से डर डर कर बहुत जी चुके
अंत से परे खुद में छिपे उस अनंत को पाने कि अब चाहत है!!

3 comments:

Pavitra said...

My hindi is bad...so am always doubly impressed when someone expresses this well in the language. Beautiful!
I went for a self realisation mediation session the other day...I know its an obvious attempt...but truly loved it...the peace and quiet.
Its not like I'd like to be alone...more like I'd like to be with myself...felt it completely.

Me Thinks.. said...

Wish I could express like you..

of just being me..

angelofdusk said...

@ prude... i remember going through a day of silence at Taize... wonderful i know what u r saying about the obvious attempt... its welll thought rather
@MT u can