माया...
दुनिया का हर इन्सान कहीँ ना कहीँ मेरा सामना कर्ता है,
साधू संत आदमी अनंत कभी ना कभी तो मुझसे डरता है।
मुझसे रिश्ता कायम कर, हर जीव आनंद भोगता है
फिर भोगने को तुच्छ मानकर, छोड मुझे भाग निकलता है
पहचाना मुझे?? हाँ मैं माया हूँ !!
मैं वोही माया हूँ जिसे अपनाकर हर कोई ठुकराता है
मैं वोही माया हूँ जिसे इन्सान चाहता और अज्माता है
मुझमे खोये मुझमे लीन सपना देखती थो दुनिया है
पर भरम टूटकर जब खुद पर शरमाये, कहती कारण माया है
मध् लोभ क्रोध और कामना मे बहती जाती थो दुनिया है,
पर आत्मा को उत्तर देते कहती कारण माया है।
खुद पर नियंत्रण खोकर क्षणिक सुख भोगती तो दुनिया है,
उस क्षणिक सुख के भोग का पर इलज़ाम खाती माया है।
कहते हैं द्रोहकाल के वक़्त मन्ड्लाती एक साया है
मुझमे खुद को भुला देती है दुनिया पर कहती कारण माया है ।
मेरे साये को जादू समझ मंत्रमुग्ध होती तो दुनिया है,
जादू से जीं भर आये तब कहती ज़ह्रीली माया है
हद को पार हर सरहद को पार करती अजब दुनिया है
खुद के चंचलता को भूल पर कहती कारण माया है।
अपने लिए अज्माकर मुझे बीच मझदार छोड जाती तो दुनिया है
उसी पथ पे मुक्ति मोक्ष खोजते कहती, बीच खडी माया है?!!
मुक्ती मुक्ती के नारे से पावन कहलाती दुनिया है
बिन मुक्ति बिन साथी के पापी कहलाती माया है
माया से सब कुछ पाकर, उससे छूट जाती दुनिया है...
साबका साथ होकर भी तनहा रह जाती माया है
तनहा रह जाती माया है ॥
saranya